भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छुरियों–काँटों से / रामकुमार कृषक" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | छुरियों-काँटों से खाने का | |
शौक़ आदमी का, | शौक़ आदमी का, | ||
बहुत साफ़ संकेत | बहुत साफ़ संकेत |
18:51, 8 जुलाई 2022 के समय का अवतरण
छुरियों-काँटों से खाने का
शौक़ आदमी का,
बहुत साफ़ संकेत
नाख़ूनों के बढ़ आने का
हाथ छोटे पड़ जाने का !
देह स्वाद हो गई देह का
ख़ून हुआ पानी
बिम्ब देख हंसती प्यालों में
आदिम शैतानी,
झूठमूठ जूठन खाने का
चाव आदमी का,
बहुत साफ़ संकेत
मित्र-चारा उग आने का
हाथ से हाथ मिलाने का !
राजरोगिणी हुई सभ्यता
दर्शन ऐय्याशी
जा बैठे जनखे जनवासे
जन को शाबाशी,
हर चेहरे में ढल जाने का
हुनर आदमी का,
बहुत साफ़ संकेत
नए नारे गढ़ लाने का
मञ्च से उन्हें भुनाने का !
02 नवम्बर 1974