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"आँख वाले हो के भी अंधे हुए / डी .एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर

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आंख वाले हो के भी अंधे हुए
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सोचिए  कुछ हादसे ऐसे हुए
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जब ज़रूरत से अधिक पैसे हुए
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इस तरक़्क़ी  का यही हासिल रहा
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ज़िन्दगी के स्वाद सब फीके हुए
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वो न समझेंगे कभी संवेदना
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जो मशीनों के ही कलपुर्ज़े हुए
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गांव में कमज़ोर कुछ बूढ़े बचे
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शेष तो नगरों के बाशिंदे हुए
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आधुनिक बनने का मतलब क्या यही
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क़ीमती वस्त्रों में भी  नंगे हुए
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आप क़ाबिल  थे , बहुत  ही अक़्लमंद
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आप के फिर साथ  क्यों धोखे हुए
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गिरगिटों की जात हम पहचानते
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तब वही कैसे थे, अब कैसे हुए
  
 
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21:01, 14 दिसम्बर 2022 के समय का अवतरण

आंख वाले हो के भी अंधे हुए
सोचिए कुछ हादसे ऐसे हुए

बेदख़ल इंसानियत होने लगी
जब ज़रूरत से अधिक पैसे हुए

इस तरक़्क़ी का यही हासिल रहा
ज़िन्दगी के स्वाद सब फीके हुए

वो न समझेंगे कभी संवेदना
जो मशीनों के ही कलपुर्ज़े हुए

गांव में कमज़ोर कुछ बूढ़े बचे
शेष तो नगरों के बाशिंदे हुए

आधुनिक बनने का मतलब क्या यही
क़ीमती वस्त्रों में भी नंगे हुए

आप क़ाबिल थे , बहुत ही अक़्लमंद
आप के फिर साथ क्यों धोखे हुए

गिरगिटों की जात हम पहचानते
तब वही कैसे थे, अब कैसे हुए