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"योजनाओं का शहर-7 / संजय कुंदन" के अवतरणों में अंतर
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योजनाओं में हरियाली थी
धूप खिली थी, बह रहे थे मीठे झरने
एक दिन एक योजनाकार को
रास्ते में प्यास से तड़पता एक आदमी मिला
योजनाकार को दया आ गई
उसने झट उसके मुँह में एक योजना डाल दी