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"योजनाओं का शहर-6 / संजय कुंदन" के अवतरणों में अंतर
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19:55, 12 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण
योजनाओं में यह शहर
धरती पर नहीं रह गया था
इसका अपना एक अलग अक्ष था
यह स्वर्ग की परिक्रमा करता था
योजनाओं में बस एक मौसम था
और सूर्यास्त का कोई ज़िक्र नहीं था
शाम के झुटपुटे में रोज़ लौटती थी
याचकों की एक भीड़
न जाने अपने भीतर कितनी खरोंचे लिए
योजनाकारों को कभी नहीं दिखते थे वे लोग
जो किसी तरह बचते-बचाते
पता नहीं किस दिशा में जा रहे होते थे
एक दिन इसी तरह
कुछ सूअर सड़क पार कर रहे थे
योजनाओं के नशे में डूबे लोगों ने
उन्हें देखा तो डर गए
उन्हें लगा यह कोई बुरा सपना है।