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"रोटी / कुमार कृष्ण" के अवतरणों में अंतर

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13:51, 24 फ़रवरी 2023 के समय का अवतरण

आज एक रोटी कर रही है भूख हड़ताल
दूसरी रोटी ले रही है जन्म
यह बीज की तकलीफ़ के बारे में
सोचने का वक्त है
हमें सोचना चाहिए-
बंजर होते खेतों के बारे में
जहाँ ज़मीन लगातार सुनाती रही रोटी को-
बादलों की कहानियाँ
सिखाती रही विपदा से लड़ने की कला
दोस्तो-
रोटी खेत की अंतिम इच्छा है
वह आग के पंखों पर उड़ती
धरती की खुशबू है
वह है बीज का हलफ़नामा
मनुष्य की भूख
ऐसे समय में हमें एक बार
जरूर सोचना चाहिए-
राजा की पगड़ी के बारे में
कितनी अजीब बात है-
दूसरों की भूख के लिए रोटी
खुद भूखी रह रही है
दोस्तो-
रोटी खेत की पगड़ी बीज का सपना है
वह आग का राग राजा का भाषण है
रोटी हल का फल हेंगे की प्रीत है
मौसम से लड़कर
बीज की जीत है
रोटी किसान को रोना
राजा को सोना सिखाती है
रोटी को ईश्वर में बदलता है हलवाहा
राजा ईश्वर को माला पहनाकर
खुद ईश्वर हो जाता है।