भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"गुरुत्वाकर्षण / रुचि बहुगुणा उनियाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रुचि बहुगुणा उनियाल |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:25, 27 अप्रैल 2023 के समय का अवतरण

धरती अपनी धुरी पर घूमती हुई
हर बार अपने उस कोने की ओर झुक जाती है
जिस कोने में रहते हैं हम-तुम
जितनी बार तुम चूम लेते हो मेरे माथे का सूरज
उतनी बार धरती पर गुरुत्वाकर्षण का बल
अपनी नियत नियमावली के विरूद्ध हो जाता है
तुम्हारे एक चुम्बन का भार
धरती पर मौजूद हज़ारों दुःखों के
भार का महत्व शून्य करने को पर्याप्त है।