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"बुनाई का दुख -2 / कमल जीत चौधरी" के अवतरणों में अंतर

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रंग-बिरंगे
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आजीवन
कच्चे-पक्के
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एक धागा बुनता रहा
पतले-मोटे
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मेरा क्षण-प्रतिक्षण
रेशमी सूती धागे लेकर
+
प्रतिकार में उसने
बुनती हूँ रोज़ अपना आप —
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खो दिया अपना अन्तिम सिरा ।
 
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तुम एक ही झटके में
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उधेड़ देते हो मुझे
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मेरी प्रत्येक बुनाई का अन्तिम सिरा
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तुम्हारे पास है
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23:48, 17 मई 2023 के समय का अवतरण

आजीवन
एक धागा बुनता रहा
मेरा क्षण-प्रतिक्षण
प्रतिकार में उसने
खो दिया अपना अन्तिम सिरा ।