Changes

<poem>
बारिश होती रही सारी रात, पानी बिना रुके बहता रहा
अलसी के तेल का दिया कमरे में सारी रात जलता रहादहता रहा
अपने कासनी घूँघट में से धरती धीरे-र्धीरे साँसें लेती रही
गर्म प्याले से उठे उठती है भाप जैसे, धरा से वैसे धुआँ उठता से धुआँ महता रहा
कब अपना सिर उठाएगी घास, धरती से बाहर आएगी
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,282
edits