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"पंथ दौलत से न जीता जाएगा / मुकुट बिहारी सरोज" के अवतरणों में अंतर
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− | पंथ | + | पंथ दौलत से न जीता जाएगा नादान ! |
स्वर्ण-कलशों में भरे मणियाँ | स्वर्ण-कलशों में भरे मणियाँ | ||
− | हज़ारों देवता | + | हज़ारों देवता भागे । |
− | झुक गई | + | झुक गई लेकिन करोड़ों बार |
− | दौलत | + | दौलत धूल के आगे । |
− | धूल की | + | धूल की कैसे ख़रीदेगा अकिंचन आबरू |
− | राख में लिपटे पड़े हैं सैकड़ों | + | राख में लिपटे पड़े हैं सैकड़ों भगवान । |
− | शीश वे, | + | शीश वे, जिनपर कि |
− | मलयानिल डुलाता था | + | मलयानिल डुलाता था विजन । |
पाँव वे, जिन पर कि नित | पाँव वे, जिन पर कि नित | ||
− | माथा झुकाता था | + | माथा झुकाता था गगन । |
एक कण के राज्य की सीमा न पाए जीत | एक कण के राज्य की सीमा न पाए जीत | ||
− | नत पड़े हैं | + | नत पड़े हैं विश्वविजयी दम्भ के अरमान ! |
− | तू अभी | + | तू अभी आरम्भ ही करने चला है |
− | पुस्तिका का | + | पुस्तिका का लेख । |
− | इसलिए | + | इसलिए उस हाथ फैलाए हुए |
− | + | इंसान को भी देख । | |
राह दोनों की बराबर है, बराबर चाह | राह दोनों की बराबर है, बराबर चाह | ||
− | हैं नहीं लेकिन बराबर | + | हैं नहीं, लेकिन बराबर राह के सामान ! |
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15:41, 29 अगस्त 2023 के समय का अवतरण
पंथ दौलत से न जीता जाएगा नादान !
स्वर्ण-कलशों में भरे मणियाँ
हज़ारों देवता भागे ।
झुक गई लेकिन करोड़ों बार
दौलत धूल के आगे ।
धूल की कैसे ख़रीदेगा अकिंचन आबरू
राख में लिपटे पड़े हैं सैकड़ों भगवान ।
शीश वे, जिनपर कि
मलयानिल डुलाता था विजन ।
पाँव वे, जिन पर कि नित
माथा झुकाता था गगन ।
एक कण के राज्य की सीमा न पाए जीत
नत पड़े हैं विश्वविजयी दम्भ के अरमान !
तू अभी आरम्भ ही करने चला है
पुस्तिका का लेख ।
इसलिए उस हाथ फैलाए हुए
इंसान को भी देख ।
राह दोनों की बराबर है, बराबर चाह
हैं नहीं, लेकिन बराबर राह के सामान !