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"सन्ध्या-चित्र-2 / विजयदेव नारायण साही" के अवतरणों में अंतर
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हज़ार-हज़ार तोते
छर्रे की तरह छूटते हैं
पीछे, ऊँची मेहराबों से :
आकाश में
खाते हैं गोते ।
सलाखों के पीछे से
सेंदुर पुता हुआ
झाँकता है कोई चेहरा
रंगे हाथ
खिलखिलाता ।