भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कुहासा / साधना सिन्हा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=साधना सिन्हा |संग्रह=बिम्बहीन व्यथा / साधना सिन...)
 
(कोई अंतर नहीं)

03:23, 21 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण


यह
क्यों होता है
अहं का कुहासा
घेर लेता है हरदम

वही छत
वही दीवारें
और हम
एक दूसरे के लिए
अनजबी हो जाते हैं

उड़ती निगाहों से देखते हैं
और अपने-अपने
काम में व्यस्त
हो जाते हैं
चलता है कुछ दिन
यह क्रम
 
हम अकेले हैं
कितने अकेले हैं
मेरा, और शायद
तुम्हारा भी
एकाकीपन
औपचारिकता के आवरणों
को दूर फेंक देता है
 
और हम
अपने एकाकीपन के साथ
एक ही शय्या पर
आह्लाद, अवसाद से
अनछुये
पड़े रह्ते हैं
नई सुबह होने तक ।