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"चाहत / ऋचा दीपक कर्पे" के अवतरणों में अंतर

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09:55, 18 जनवरी 2025 के समय का अवतरण

लेकर
अपने हाथों में
हाथों को तुम्हारे
चाँद तक जाना
चाहती हूँ मैं..

रखकर
अपना सर
कंधे पर तुम्हारे
सदियाँ नाप जाना
चाहती हूँ मैं...

डालकर
अपनी आँखें
आँखों में तुम्हारी
बस डूब जाना
चाहती हूँ मैं..

घोलकर
अपनी सांसें
सांसों में तुम्हारी
सब भूल जाना
चाहती हूँ मैं...

खोकर
अपना सबकुछ
बस तुम्हारे लिए
तुमको पा जाना
चाहती हूँ मैं...