भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कॉपी पेस्ट / ऋचा दीपक कर्पे" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ऋचा दीपक कर्पे |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

10:02, 18 जनवरी 2025 के समय का अवतरण

कॉपी पेस्ट
करने में ही बीत रही है ज़िन्दगी
दिल ने दिमाग से झगडना
छोड़ दिया है अब...
दिमाग भी अब पहले की तरह
सोचता नही ज़्यादा..
जो देखता है जो सुनता है
बस कर देता है उसे कॉपी पेस्ट

अच्छा!
फ़लाँ के लडके ने उस शहर के
इंजीनियरिंग कॉलेज में
एडमिशन ली है!
किया अपने बेटे को कॉपी
और कर दिया उसी कॉलेज में पेस्ट...

सभी लोग यह फिल्म देखने
जा रहे हैं थिएटर में
किया खुद को सपरिवार कॉपी
और कर दिया थिएटर में पेस्ट

अरे इन दिनों
सभी शादियों में ऐसा होता है
लहंगा सभी वहाँ से ऑर्डर करते हैं
लेडीज संगीत तो ज़रूरी है
उस सेलिब्रिटी ने जो जयमाला पहनी थी..
रिसेप्शन का मेन्यू
बस…
फिर दो-चार बार कॉपी पेस्ट.. .

पता है?
वीकेंड में सारे दोस्त
लाँग ड्राईव्ह पर जाते हैं
महंगे वाले कैफे में
महंगी वाली कॉफी पीते हैं
कपड़े सब इसी ब्रांड के पहनते हैं
झट से किया कॉपी
और एक बार फिर पेस्ट

मदर्स डे फादर्स डे,
वेलेन्टाइन डे के चलते
प्यार का इजहार
माँ का दुलार
भाइयों का प्यार
यहाँ तक कि संस्कृति और संस्कार
तक हो रहे हैं कॉपी पेस्ट!

हम तो फिर भी
अपनी भावनाओं को
अपने शब्दों को
कविता में ढाल लेते हैं
वरना आजकल तो
सोशल मीडिया से
साहित्य भी हो जाता है
कॉपी पेस्ट…