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"बरसात / ऋचा दीपक कर्पे" के अवतरणों में अंतर

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10:02, 18 जनवरी 2025 के समय का अवतरण

मेरे कमरे की खिड़की
बेतरतीब से बढ़े हुए कुछ पेड़
आँखों को ठंडक देने वाली
हलके गहरे हरे रंग की पत्तियाँ
मौसम की चाय में
अदरक-सी घुली हुई
सौंधी मिट्टी की महक
मन की मेज पर
बिखरे हुए यादों के पन्ने
ख़यालों की टहनियों पर
पंख फडफड़ाते सपनों के पंछी
आसमान से बरसता सावन
और आँखों से बरसते तुम...