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{{KKRachna
|रचनाकार=गैयोम अपोल्लीनेर
|अनुवादक=मदन पाल सिंहअनिल जनविजय
|संग्रह=
}}
बीत रहा है पतझड़ का यह मौसम, जानी !
तोड़ी मैंने बकाइन के फूलों की टहनी, रानी !
याद रहे तु्झेतुझे, इस धरती पर अब कभी न होगा मिलना
याद रहे इस समय की ख़ुशबू औ’ बकाइन का खिलना
याद रहे तुझे इन्तज़ार कर रहा हूँ तेरा मैं हरदम