भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ब्लोक के लिए-5 / मरीना स्विताएवा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मरीना स्विताएवा |संग्रह=आएंगे दिन कविताओं के / म...)
 
(कोई अंतर नहीं)

23:21, 29 नवम्बर 2008 के समय का अवतरण

कलश जल रहे हैं मेरे यहाँ मास्को में
घंटियाँ बज रही हैं मेरे यहाँ मास्को में
पंक्तिबद्ध कब्रों में
सो रहे हैं सम्राज्ञी और सम्राट ।

तुम्हें नहीं मालूम कि दुनिया में कहीं भी
इतनी निर्बाध साँस नहीं ली जा सकती जितनी कि क्रेमलिन में ।
तुम्हें नहीं मालूम कि क्रेमलिन में सुबह से शाम तक
प्रार्थना करती हूँ मैं तुम्हारे नाम की ।

और तुम टहल रहे होते हो निवा पर
तब जब मस्कवा नदी के ऊपर
मैं खड़ी होती हूँ सिर झुकाए
जब सिमट जाते हैं सब चिराग ।

इस अनिद्रा से प्रेम करती हूँ मैं तुम्हें,
तब जब पूरे क्रेमलिन में
जाग रहे होते हैं सब चिराग ।

लेकिन मेरी नदी मिल नहीं पाएगी तुम्हरी नदी से,
मिल नहीं पाएगा मेरा हाथ तुम्हारे हाथ से

ओ मेरी ख़ुशियों के स्रोत
मिल नहीं पाएंगे वे
मिल नहीं पाएंगी जब तक झिलमिलाहटें
साँझ और सुबह की ।

रचनाकाल : 7 मई 1916

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह