भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वे / प्रभात" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभात |संग्रह= }} <Poem> वह पानी है और उसके पास बातों...)
(कोई अंतर नहीं)

21:28, 9 दिसम्बर 2008 का अवतरण


वह पानी है
और उसके पास बातों के कंकड़ हैं

वह गहरी ही गहरी होती जाती है
उससे यह सहा नहीं जाता है

वह कहीं खो जाती है
वह बात का कंकड़-सा डालकर
उसे चौंकाता है

वह सिहर जाती है
वह उसके साथ
यों ही रहती है