भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"स्वप्न-2 / पीयूष दईया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पीयूष दईया |संग्रह= }} <Poem> मैं शर्मिन्दा हूँ अपने ...)
 
(कोई अंतर नहीं)

00:42, 13 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण

मैं शर्मिन्दा हूँ अपने शब्दों के लिए
जिन्हें आप पढ़ रहे हैं
-यह जानते हुए भी कि ये मेरे है
और आप पढ़ रहे हैं
जैसे कि मैंने इन्हें लिखा था
कभी गोया

ताकि बची रहे सारी साँसें

जीने में
कोई जग जाय
और शर्मिंन्दा न हो
दरअसल

यह स्वप्न है