भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पक गई खेती / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अज्ञेय |संग्रह= }} <Poem> वैर की परनालियों में हँस-हँस...)
(कोई अंतर नहीं)

10:56, 14 दिसम्बर 2008 का अवतरण

वैर की परनालियों में हँस-हँस के
हमने सींची जो राजनीति की रेती
उसमें आज बह रही खूँ की नदियाँ हैं
कल ही जिसमें ख़ाक-मिट्टी कह के हमने थूका था
घृणा की आज उसमें पक गई खेती
फ़सल कटने को अगली सर्दियाँ हैं।