भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कैसे देखूँ / प्रभात रंजन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रभात रंजन |संग्रह= }} <Poem> डूबती साँझ की व्यथा कै...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:04, 23 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण
डूबती साँझ की व्यथा
कैसे देखूँ-
इन सहमे उदास पेडों को
कैसे देखूँ-
इस स्तब्ध अंधियारी को
कैसे देखूँ-
यह भयावना एकाकीपन
और सूनी बोझिल शामें
यह घुट-घुट, डूबती स्याह शामें-
पूजा घंटियों को शून्य कर देने वाली प्रतिध्वनियाँ
झाड़ियों में झींगुरों का अनवरत गुंजन,
नयन-तट से अवश्य होते पाल
झिलमिलाते द्वीप-
कैसे? कैसे? कैसे?... मैं
कैसे देखूँ !