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जो ऊँचा है चिमनियों और सलीब से,
बप्तिस्मा हुए हैं जिसकी आग और धुएँ में,
आदि देवदूत भारी-भरकम
सदियों में एक होता है व्लादीमिर।

घोड़ा और घुड़सवार-- दोनों है वह
सनक है वह और विवेक भी।
साँस लेता, थूक से मलता है हथेलियाँ।
सम्भल जाओ, ओ भार ढोती महानता !

चौराहों के आश्चर्यों का गायक
स्वस्थ, स्वाभिमानी, मलिनमुख,
हीरे भी न कर पाए आकर्षित
चट्टान की तरह भारी उसे।

चट्टानों से चट्टान का शोर।
उबासी लेता, अभिवादन करता और पुन:
लकड़ी के हत्थे-जैसे पंखों पर
सवार होता भारी-भरकम देवदूत।

रचनाकाल : 18 सितम्बर 1921

मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह