भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मछली / बद्रीनारायण" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बद्रीनारायण |संग्रह= }} <Poem> दुख हुआ जान कर कि सूख ...)
 
(कोई अंतर नहीं)

14:58, 27 दिसम्बर 2008 के समय का अवतरण


दुख हुआ जान कर कि
सूख गया मानिकपुर का तालाब
मानिकपुर के तालाब में एक मछली रहती थी नीली
जिससे मेरी ख़ूब दोस्ती थी
उसका क्या हुआ
कुछ का कहना है कि
जब धूप में सूख कर उड़ रहा था तालाब का पानी
तब वह भी सूखती, पटपटाती, भुनती हुई
हवा में उड़ी थी
जब वह उड़ी थी हवा में तड़पती, ऐंठती, छटपटाती
तो वह कहीं न कहीं तो गई ही होगी
हम तो चले जाते हैं भाग कर
गाजियाबाद, नोएडा, नासिक, सूरीनाम
वह कहाँ गई लोगो ! वह कहाँ गई,
वह भाप बन गई या गिरी जल कर
फिर से किसी तालाब में
कि उसे किसी धन्ना-सेठ ने पानी के लिए
तरसा कर अपने तालाब में पोस लिया
कि वह गिरी जाकर राष्ट्र की प्रथम महिला
के श्रृंगारदान में
कि वह गिरी किसी तस्कर के वृहद प्लान में
जिसने कि कब्ज़ा कर ली उसकी देह
बेच दिया उसके प्राण को
यह भी हो सकता है कि वह जाकर गिर गई हो
किसी हत्यारे की गहरी नींद के सिरहाने
एक लड़का जो प्रायः उस तालाब के किनारे
घूमता रहता था
उसने कहा- नहीं ! नहीं !
वह जा गिरी थी एक मछुआरे की हथेली पर
जिसने उसे एक लड़की में तब्दील कर दिया
जो आज भी रहती है
प्राणपुर गाँव में
अपने मछुआरे के लिए
किसी और तालाब की
रोहू रीन्हती हुई
उसमें डालने के लिए सरसों का मसाला
पीसती हुई