भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हिंसा / कुसुम जैन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुसुम जैन |संग्रह= }} <Poem> हिंसा की भाषा बड़ी सख़्त ...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:47, 2 जनवरी 2009 के समय का अवतरण
हिंसा की भाषा
बड़ी सख़्त
बड़ी भारी
और
ऎंठी हुई होती है
मृत
शरीरों की तरह
फिर भी
कोई इसे
न दफ़नाता है
न जलाता है