भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"हिंसा / कुसुम जैन" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुसुम जैन |संग्रह= }} <Poem> हिंसा की भाषा बड़ी सख़्त ...)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:47, 2 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

हिंसा की भाषा
बड़ी सख़्त
बड़ी भारी
और
ऎंठी हुई होती है

मृत
शरीरों की तरह

फिर भी
कोई इसे
न दफ़नाता है
न जलाता है