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"परमसत्ता / श्रीनिवास श्रीकांत" के अवतरणों में अंतर
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ब्रह्माण्डीय आत्मा गायब है | ब्रह्माण्डीय आत्मा गायब है | ||
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आज के परिदृश्य से | आज के परिदृश्य से | ||
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उस पर हावी है | उस पर हावी है | ||
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आदमी की भौतिक विषा— अंतरंग | आदमी की भौतिक विषा— अंतरंग | ||
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मछली की तरह छटपटाती | मछली की तरह छटपटाती | ||
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रूहपोश नज़र आयेगी तुम्हें | रूहपोश नज़र आयेगी तुम्हें | ||
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वह परमा | वह परमा | ||
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पर्वतीय ढलानों पर | पर्वतीय ढलानों पर | ||
− | + | हवा में झूमते दरख़्तों में | |
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आसमान में | आसमान में | ||
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तैरते बादलों में | तैरते बादलों में | ||
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उदयास्त सूरज के | उदयास्त सूरज के | ||
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सम्मोहन में | सम्मोहन में | ||
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रंगों में | रंगों में | ||
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हवाओं में | हवाओं में | ||
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भाप बन कर उड़ती | भाप बन कर उड़ती | ||
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पत्तियों की ओस में | पत्तियों की ओस में | ||
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आसमान का नटुआ | आसमान का नटुआ | ||
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हवाओं के हाथ से | हवाओं के हाथ से | ||
− | + | अब बजाता मृदंग | |
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नाचने लगता है | नाचने लगता है | ||
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आसपास | आसपास | ||
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तब वह होती है वहीं | तब वह होती है वहीं | ||
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चेतना के सागर-जल में | चेतना के सागर-जल में | ||
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समाधिस्थ | समाधिस्थ | ||
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सतह पर | सतह पर | ||
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उछलती रहती हैं लहरें | उछलती रहती हैं लहरें | ||
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अपने वृहद घोष में | अपने वृहद घोष में | ||
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कूदतीं ज्वा की रस्सियाँ | कूदतीं ज्वा की रस्सियाँ | ||
− | + | तू़फ़ानों के साथ | |
− | + | नज़र आती हैं वे | |
− | + | चन्द्रमा के हज़ार-हज़ार बिम्बों में | |
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− | चन्द्रमा के | + | |
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समुद्र के ज्वार में | समुद्र के ज्वार में | ||
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तट पर उमड़ती लहरों की | तट पर उमड़ती लहरों की | ||
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तैरती बक पंक्तियों में | तैरती बक पंक्तियों में | ||
पर फडफ़ड़ातीं। | पर फडफ़ड़ातीं। | ||
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13:16, 12 जनवरी 2009 का अवतरण
ब्रह्माण्डीय आत्मा गायब है
आज के परिदृश्य से
उस पर हावी है
आदमी की भौतिक विषा— अंतरंग
मछली की तरह छटपटाती
रूहपोश नज़र आयेगी तुम्हें
वह परमा
पर्वतीय ढलानों पर
हवा में झूमते दरख़्तों में
आसमान में
तैरते बादलों में
उदयास्त सूरज के
सम्मोहन में
रंगों में
हवाओं में
भाप बन कर उड़ती
पत्तियों की ओस में
आसमान का नटुआ
हवाओं के हाथ से
अब बजाता मृदंग
नाचने लगता है
आसपास
तब वह होती है वहीं
चेतना के सागर-जल में
समाधिस्थ
सतह पर
उछलती रहती हैं लहरें
अपने वृहद घोष में
कूदतीं ज्वा की रस्सियाँ
तू़फ़ानों के साथ
नज़र आती हैं वे
चन्द्रमा के हज़ार-हज़ार बिम्बों में
समुद्र के ज्वार में
तट पर उमड़ती लहरों की
तैरती बक पंक्तियों में
पर फडफ़ड़ातीं।