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"चेतक की वीरता / श्यामनारायण पाण्डेय" के अवतरणों में अंतर

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जो तनिक हवा से बाग हिली
 
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राणा की पुतली फिरी नहीं
 
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वह वहीं रहा था यहाँ नहीं
 
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थी जगह न कोई जहाँ नहीं
 
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किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं
 
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निर्भीक गया वह ढालों में
 
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सरपट दौडा करबालों में
 
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हय टापों से खन गया अंग
 
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बैरी समाज रह गया दंग
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घोड़े का ऐसा देख रंग
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14:40, 2 अक्टूबर 2008 का अवतरण

रणबीच चौकड़ी भर-भर कर
चेतक बन गया निराला था
राणाप्रताप के घोड़े से
पड़ गया हवा का पाला था

जो तनिक हवा से बाग हिली
लेकर सवार उड जाता था
राणा की पुतली फिरी नहीं
तब तक चेतक मुड जाता था

गिरता न कभी चेतक तन पर
राणाप्रताप का कोड़ा था
वह दौड़ रहा अरिमस्तक पर
वह आसमान का घोड़ा था

था यहीं रहा अब यहाँ नहीं
वह वहीं रहा था यहाँ नहीं
थी जगह न कोई जहाँ नहीं
किस अरि मस्तक पर कहाँ नहीं

निर्भीक गया वह ढालों में
सरपट दौडा करबालों में
फँस गया शत्रु की चालों में

बढते नद सा वह लहर गया
फिर गया गया फिर ठहर गया
बिकराल बज्रमय बादल सा
अरि की सेना पर घहर गया।

भाला गिर गया गिरा निशंग
हय टापों से खन गया अंग
बैरी समाज रह गया दंग
घोड़े का ऐसा देख रंग