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22:35, 20 जनवरी 2009 का अवतरण
सप्ताह की कविता
शीर्षक: है धुएँ में सदी
रचनाकार: यश मालवीय
है धुएँ में सदी उसको आवाज़ दो बन्द घड़ियों को कोई घड़ीसाज दो साँस को ख़ुशबुओं का वजीफ़ा तो दो इस उदासी को कोई लतीफ़ा तो दो दोस्ती के कई राज़ लो, राज़ दो खिड़कियाँ बन्द हैं खिड़कियाँ खोल दो है जो गुमसुम उसे गीत के बोल दो वक़्त के हाथ फिर से नया साज़ दो कब से देखा नहीं कहकशाँ की तरफ़ मुँह करो तो कभी आसमाँ की तरफ़ तितलियों को भी रंगों का कोलाज दो ।