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"हवा / केशव" के अवतरणों में अंतर

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हवा
 
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यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था दुनिया को तख़्ती की तरह रखकर सामने  
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कुछ लिखा जाए  
 
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वक्त की नोक से  
 
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22:17, 24 जनवरी 2009 के समय का अवतरण


हवा
यह बहुत पहले हो जाना चाहिए था
दुनिया को तख़्ती की तरह रखकर सामने
कुछ लिखा जाए
वक्त की नोक से

जैसे
दिए की रोशनी में हौसले चीरते होंठों का गीत प्यार के जिस्म पर
जमी हुई बर्फ़ को पिघलाता
               सूरज
आकंठ
अपने में डूबी
प्रार्थनाओं को
            खींचते हाथ

ऐसा ही कुछ
निखा होना चाहिए था
जिसे हम
बनते हुए पुल में
रस्सी की तरह इस्तेमाल कर सकते
या जिसे हम
एक तम्बू की तरह एक छोर से
दूसरे तक तान सकते
हरी-भरी आबाज़ों के पकथ जाने तक
फनफनाती हुई नदी को
पोटली में बाँध कर
हवा से लड़ने की ठान सकते