भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चली जाओ / ज़्देन्येक वागनेर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज़्देन्येक वागनेर |संग्रह= }} <Poem> चली जाओ अगर तुम ...)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:57, 26 जनवरी 2009 के समय का अवतरण

चली जाओ
अगर तुम जाना चाहती हो

वहाँ तक
जहाँ से व्योम-गंगा बहती है।

तुम्हारी आँखों की
चमकीली तारिकाएँ
मेरे दिल में से तो

कभी ग़ायब न होंगी।



अब यही कविता चेक भाषा में पढ़े :

Běž si


Běž si,
když chceš,
až tam,
odkud vytéká Mléčná dráha.
Hvězdy tvých očí
však ve mně
nevyhasnou.