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"कोई आकृति / नरेन्द्र जैन" के अवतरणों में अंतर

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12:44, 29 जनवरी 2009 का अवतरण

उसकी कल्पना से बड़ी दुनिया
आज तक बसी नहीं

जब वह
सोचता है
दुनिया छोटी होती है उसके
आगे
ठीक उसकी हथेली पर खिले
फूल की मानिन्द

उसके सपने
घूमते ग्रहों के चमकते जाल हैं
रोशनी होते हैं जो
उसकी इच्छाओं के सूरज से

वह खींचता है
ज़मीन पर कोई लकीर
और जीवित हो उठती है
ज़मीन पर आकृति

दुनिया बहुत बड़ी होगी
अगर वह चाहे
बयान कर दे उसे
दो शब्दों में