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"कितनी नावों में कितनी बार / अज्ञेय" के अवतरणों में अंतर
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− | कितनी नावों में कितनी बार
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− | कितनी दूरियों से कितनी बार
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− | कितनी डगमग नावों में बैठ कर
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− | मैं तुम्हारी ओर आया हूँ
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− | ओ मेरी छोटी-सी ज्योति !
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− | कभी कुहासे में तुम्हें न देखता भी
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− | पर कुहासे की ही छोटी-सी रुपहली झलमल में
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− | पहचानता हुआ तुम्हारा ही प्रभा-मंडल ।
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− | कितनी बार मैं,
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− | धीर, आश्वस्त, अक्लांत –
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− | ओ मेरे अनबुझे सत्य ! कितनी बार.....
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− | और कितनी बार कितने जगमग जहाज
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− | मुझे खींच कर ले गये हैं कितनी दूर
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− | किन पराये देशों की बेदर्द हवाओं में
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− | जहाँ नंगे अँधेरों को
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− | और भी उघाड़ता रहता है
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− | एक नंगा, तीखा, निर्मम प्रकाश –
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− | जिसमें कोई प्रभा-मंडल, नहीं बनते
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− | केवल चौधिंयाते हैं तथ्य, तथ्य—तथ्य—
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− | सत्य नहीं, अंतहीन सच्चाइयाँ....
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− | कितनी बार मुझे
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− | खिन्न, विकल, संत्रस्त –
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− | कितनी बार !
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18:14, 10 जनवरी 2008 का अवतरण