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"अजब दुनिया है नाशायर यहाँ पर सर उठाते हैं / मुनव्वर राना" के अवतरणों में अंतर
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हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं | हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं | ||
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ज़मीं से चूमकर तितली के टूटे पर उठाते हैं | ज़मीं से चूमकर तितली के टूटे पर उठाते हैं | ||
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क़लम किस पर उठाना था क़लम किसपर उठाते हैं | क़लम किस पर उठाना था क़लम किसपर उठाते हैं | ||
− | बुरे चेहरों की जानिब देखने की हद भी | + | बुरे चेहरों की जानिब देखने की हद भी होती है |
सँभलना आईनाख़ानो, कि हम पत्थर उठाते हैं | सँभलना आईनाख़ानो, कि हम पत्थर उठाते हैं | ||
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21:05, 7 फ़रवरी 2009 का अवतरण
अजब दुनिया है नाशायर यहाँ पर सर उठाते हैं
जो शायर हैं वो महफ़िल में दरी- चादर उठाते हैं
तुम्हारे शहर में मय्यत को सब काँधा नहीं देते
हमारे गाँव में छप्पर भी सब मिल कर उठाते हैं
इन्हें फ़िरक़ापरस्ती मत सिखा देना कि ये बच्चे
ज़मीं से चूमकर तितली के टूटे पर उठाते हैं
समुन्दर के सफ़र से वापसी का क्या भरोसा है
तो ऐ साहिल, ख़ुदा हाफ़िज़ कि हम लंगर उठाते हैं
ग़ज़ल हम तेरे आशिक़ हैं मगर इस पेट की ख़ातिर
क़लम किस पर उठाना था क़लम किसपर उठाते हैं
बुरे चेहरों की जानिब देखने की हद भी होती है
सँभलना आईनाख़ानो, कि हम पत्थर उठाते हैं