भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"रुख़ और मंज़िल / प्रफुल्ल कुमार परवेज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 22: पंक्ति 22:
 
अंतिम पड़ाव  
 
अंतिम पड़ाव  
 
अंतहीन पेट है
 
अंतहीन पेट है
 
 
 
</poem>
 
</poem>

21:54, 8 फ़रवरी 2009 के समय का अवतरण


इस वक्त
अंधड़ है

रुख़ उस ओर है
जिस ओर गहरी लंबी साँसे
खींच रहा है
भारी-भरकम स्वार्थ

टूटने की हद तक
झुक रहे हैं पेड़
बेमौसम झड़ रहे हैं पत्ते

जिस ओर चलना सुविधा है
अंतिम पड़ाव
अंतहीन पेट है