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"अंतिम राजकीय तर्क / स्तेफान स्पेन्डर" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=स्तेफान स्पेन्डर |संग्रह= }} <poem> बंदूकें धन के अं...)
 
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वो तो चुंबन के लिए बेहतर निशाना था।
 
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जब वो जिंदा था, मिलों की ऊँची चिमनियों ने कभी नहीं बुलाया।
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जब वो ज़िंदा था, मिलों की ऊँची चिमनियों ने उसे कभी नहीं बुलाया।
 
ना ही रेस्तराँ के शीशों के दरवाज़े घूमे उसे अंदर ले लेने के लिए।
 
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उसका नाम कभी अखबारों में नहीं आया।
 
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जबकि उसकी ज़िंदगी, शेयर बाज़ार की अगोचर अफ़वाह की तरह, बाहर भटकती रही।
 
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अरे, उसने अपनी टोपी खेल-खेल में ही फेंक दी
 
एक दिन जब हवा ने पेड़ों से पंखुड़ियाँ फेंकीं।
 
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फूलहीन दीवार से बंदूकें फूट पड़ीं,
 
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उसकी ज़िंदगी पर गौर करो जिसकी कोई कीमत नहीं थी
रोजगार में, होटलों के रजिस्टर में, खबरों के दस्तावेज़ों में
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गौर करो। दस हज़ार में एक गोली एक आदमी को मारती है।
 
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पूछो। क्या इतना खर्चा जायज़ था
 
पूछो। क्या इतना खर्चा जायज़ था
 
इतनी बचकानी और अनाड़ी ज़िंदगी पर
 
इतनी बचकानी और अनाड़ी ज़िंदगी पर
जो जैतून के पेड़ों के नीचे पड़ी है, अरे दुनिया, अरे मौत?
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12:56, 9 फ़रवरी 2009 का अवतरण

बंदूकें धन के अंतिम कारण के हिज्जे बताती हैं
बसंत में पहाड़ों पर सीसे के अक्षरों में
लेकिन जैतून के पेड़ों के नीचे मरा पड़ा वो लड़का
अभी बच्चा ही था और बहुत अनाड़ी भी
उनकी महती आँखों के ध्यान में आने के लिए।
वो तो चुंबन के लिए बेहतर निशाना था।

जब वो ज़िंदा था, मिलों की ऊँची चिमनियों ने उसे कभी नहीं बुलाया।
ना ही रेस्तराँ के शीशों के दरवाज़े घूमे उसे अंदर ले लेने के लिए।
उसका नाम कभी अखबारों में नहीं आया।
दुनिया ने अपनी पारंपरिक दीवार बनाए रक्खी
मृतकों के चारों तरफ़ और अपने सोने को भी गहरे दबाए रक्खा,
जबकि उसकी ज़िंदगी, शेयर बाज़ार की अगोचर अफ़वाह की तरह, बाहर भटकती रही।

अरे, उसने अपनी टोपी खेल-खेल में ही फेंक दी
एक दिन जब हवा ने पेड़ों से पंखुड़ियाँ फेंकीं।
फूलहीन दीवार से बंदूकें फूट पड़ीं,
मशीन गन के गुस्से ने सारी घास काट डाली;
झंडे और पत्तियाँ गिरने लगे हाथों और शाखों से;
ऊनी टोपी बबूल में सड़ती रही।

उसकी ज़िंदगी पर गौर करो जिसकी कोई कीमत नहीं थी
रोज़गार में, होटलों के रजिस्टर में, खबरों के दस्तावेज़ों में
गौर करो। दस हज़ार में एक गोली एक आदमी को मारती है।
पूछो। क्या इतना खर्चा जायज़ था
इतनी बचकानी और अनाड़ी ज़िंदगी पर
जो जैतून के पेड़ों के नीचे पड़ी है, ओ दुनिया, ओ मौत?