भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा / वसीम बरेलवी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 
[[Category:ग़ज़ल]]
 +
<poem>
 +
मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
 +
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा
  
मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा<br>
+
यह एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा<br><br>
+
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा
  
यह एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा<br>
+
मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा<br><br>
+
कोई चिराग नहीं हूँ जो फिर जला लेगा
  
मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा<br>
+
कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
कोई चिराग नहीं हूँ जो फिर जला लेगा<br><br>
+
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा
  
कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए<br>
+
मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा <br><br>
+
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा
  
मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे<br>
+
हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता वसीम
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा<br><br>
+
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा</poem>
 
+
हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता वसीम<br>
+
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा
+

20:39, 23 फ़रवरी 2009 का अवतरण

मैं इस उम्मीद पे डूबा कि तू बचा लेगा
अब इसके बाद मेरा इम्तेहान क्या लेगा

यह एक मेला है वादा किसी से क्या लेगा
ढलेगा दिन तो हर एक अपना रास्ता लेगा

मैं बुझ गया तो हमेशा को बुझ ही जाऊँगा
कोई चिराग नहीं हूँ जो फिर जला लेगा

कलेजा चाहिए दुश्मन से दुश्मनी के लिए
जो बे-अमल है वो बदला किसी से क्या लेगा

मैं उसका हो नहीं सकता बता न देना उसे
सुनेगा तो लकीरें हाथ की अपनी वो सब जला लेगा

हज़ार तोड़ के आ जाऊं उस से रिश्ता वसीम
मैं जानता हूँ वो जब चाहेगा बुला लेगा