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कई बार ऐसा हुआ
शब्द हाथों से छूट कर
टूटकर बिखर गए
ज़मीन पर
अपनी ही तलाश में
शब्दों को गढ़ा कई बार
आवरण में रखा सहेज कर
और वो दर्द सहा
जो ख़ुद को छिपाने में रहा
कई बार ऐसा हुआ
अपने ही ख़िलाफ तन गए हम
यूँ ही ख़ुद से रूठ कर