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"आजकल का वसन्त / राजकुमार कुंभज" के अवतरणों में अंतर
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18:29, 6 मार्च 2009 का अवतरण
जीवन से गायब
मगर अख़बारों में छप जाता है
छा जाता है खेतों में
आजकल का वसन्त
कुछ इसी तरह आता है
फ़ोन पर बात करता हुआ
एक आदमी
किसी एक गर्म आलिंगन के लिए तरसता है
और तरसते-तरसते ही मर जाता है
कुछ इसी तरह आता है
आजकल का वसन्त!