भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"आस इक भी / श्याम सखा 'श्याम'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=श्याम सखा 'श्याम' }} <Poem> आस इक भी अगर फली होती ज़िं...)
 
(कोई अंतर नहीं)

20:07, 10 मार्च 2009 के समय का अवतरण

आस इक भी अगर फली होती
ज़िंदगी तू बहुत भली होती

यों थिरकती, महकती क्या ये हवा
बगिया माली ने गर छली होती

माँग लेते तुझे सितारों से
उसके आगे अगर चली होती

स्नेह-भर जो हमें मिला होता
फिर न कोई कमी खली होती

लोग क्यों बदनसीब कहते तुझे
गर मिली यार की गली होती

सब तरफ़ मेरे बस खड़ा था तू
फिर न क्योंकर मैं मनचली होती

कौन झुकता यों तेरे आगे 'श्याम'
जो न तेरी उमर ढली होती