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"सरहद से लौटते हुए / मनोहर बाथम" के अवतरणों में अंतर
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अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मनोहर बाथम |संग्रह= }} <Poem> तुम अपनी सरहद को पाक कहत...) |
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17:00, 23 मार्च 2009 के समय का अवतरण
तुम अपनी सरहद को
पाक कहते हो
मैं भी
दोनों की है यह एक
यह प्यार करना नहीं सिखाती
माँ की तरह
बाँटती है
हरदम सोचता हूँ मैं
सरहद से लोटते हुए