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आज फिर आई तुम्हारी याद
तुम फिर याद में आई-
आकर कौंध गई चारों तरफ़
समूचे ताल में !
रात भर होती रही बारिश
रह-रह कर हुमकता रहा आसमान
तुम्हारे होने का अहसास -
कहीं आस-पास
भीगती रही देहरी आंगन-द्वार
मन तिरता-डूबता रहा
तुम्हारी याद में !