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"मानुस हौं तो वही / रसखान" के अवतरणों में अंतर
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जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥ | जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥ |
00:32, 7 सितम्बर 2006 का अवतरण
लेखक: रसखान
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मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।
जो पसु हौं तो कहा बस मेरो, चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥
पाहन हौं तो वही गिरि को, जो धर्यो कर छत्र पुरंदर कारन।
जो खग हौं तो बसेरो करौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥