भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"भाषा की नींद / वंशी माहेश्वरी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वंशी माहेश्वरी |संग्रह= }} <Poem> ऊँची आवाज़ों को सुन...)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:08, 31 मार्च 2009 के समय का अवतरण

ऊँची आवाज़ों को सुना
नीचे कानों ने
कुछ कहा गया कुछ सुना गया
सन्न हो गया कहना-सुनना

जितने मुँह खुले थे
उतने ही स्वर सधे थे
भाषा की नींद में शब्द के स्वप्न अन्तिम नहीं
टूटती नींद में
टूटते सपने
सघन अंधेरे की
सघन छाया
गाहे-बगाहे चढ़ती रहती है
देश की तीली पर
रोग़न सघन