भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कर्णहर-तुम्हारी रेत पर / हरानन्द" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरानन्द }} <poem> कर्णहर तुम्हारी रेत पर सो गये सपने ...)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:34, 21 अप्रैल 2009 के समय का अवतरण

कर्णहर तुम्हारी रेत पर
सो गये
सपने वसंती
दूर जब तक
बावली की सीढ़ियों पर
गुनगुनाती
लाजवन्ती।

हरित
पुष्पित वीथिकायें
स्पर्शकातर
दिन बितायें
पुष्प-रेणु प्राप्त करने
तितलियां भी
किधर जायें।

क्यों न हम सब
आज मिलकर
पक्षियों के साथ उड़कर
तरुण रवि रश्मियों से
थोड़ा
सिन्दूरी रंग चुरायें।