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"उम्र भर जिस आईने की जुस्तजू करते रहे / गोविन्द गुलशन" के अवतरणों में अंतर

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उम्र भर जिस आईने की जुस्तजू करते रहे
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वो मिला तो हम नज़र से गुफ़्तगू करते रहे
  
  ज़ख़्म पर वो ज़ख़्म देते ही रहे दिल को मगर
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ज़ख़्म पर वो ज़ख़्म देते ही रहे दिल को मगर
  हम भी तो कुछ कम न थे हम भी रफ़ू करते रहे
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हम भी तो कुछ कम न थे हम भी रफ़ू करते रहे
  
  बुझ गए दिल में हमारे जब उमीदों के चराग़
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बुझ गए दिल में हमारे जब उमीदों के चराग़
  रौशनी जुगनू बहुत से चारसू करते रहे
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रौशनी जुगनू बहुत से चारसू करते रहे
 
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  वो नहीं मिल पाएगा मालूम था हमको मगर
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  जाने फिर क्यूँ हम उसी की आरज़ू करते रहे
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  आपने तहज़ीब के दामन को मैला कर दिया
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वो नहीं मिल पाएगा मालूम था हमको मगर
  आप दौलत के  नशे में तू ही तू करते रहे
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जाने फिर क्यूँ हम उसी की आरज़ू करते रहे
  
  ख़ुशबुएँ पढ़कर नमाज़ें हो गईं रुख़्सत मगर
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आपने तहज़ीब के दामन को मैला कर दिया
  फूल शाख़ों पर ही शबनम से वुज़ू करते रहे  
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आप दौलत के  नशे में तू ही तू करते रहे
  
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ख़ुशबुएँ पढ़कर नमाज़ें हो गईं रुख़्सत मगर
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फूल शाख़ों पर ही शबनम से वुज़ू करते रहे
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आईने क्या जानते हैं क्या बताएँगे मुझे
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आईने ख़ुद नक़्ल मेरी हू-ब-हू करते रहे
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22:40, 27 अप्रैल 2009 का अवतरण

  
उम्र भर जिस आईने की जुस्तजू करते रहे
वो मिला तो हम नज़र से गुफ़्तगू करते रहे

ज़ख़्म पर वो ज़ख़्म देते ही रहे दिल को मगर
हम भी तो कुछ कम न थे हम भी रफ़ू करते रहे

बुझ गए दिल में हमारे जब उमीदों के चराग़
रौशनी जुगनू बहुत से चारसू करते रहे

वो नहीं मिल पाएगा मालूम था हमको मगर
जाने फिर क्यूँ हम उसी की आरज़ू करते रहे

आपने तहज़ीब के दामन को मैला कर दिया
आप दौलत के नशे में तू ही तू करते रहे

ख़ुशबुएँ पढ़कर नमाज़ें हो गईं रुख़्सत मगर
फूल शाख़ों पर ही शबनम से वुज़ू करते रहे

आईने क्या जानते हैं क्या बताएँगे मुझे
आईने ख़ुद नक़्ल मेरी हू-ब-हू करते रहे