भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बड़ी भारी दुकान देखी / नरेश चंद्रकर" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नरेश चंद्रकर |संग्रह=बातचीत की उड़ती धूल में / न...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:20, 4 मई 2009 के समय का अवतरण
औसतन साठ किलोमीटर की गति से
धुँआधार दौ़अते वाहनों के बीच
ख़ुद को लगभग चूहे की तरह महसूसते हुए
सड़क पार करते मैंने समझा
क्यों ठिठक गया था पीछे
क्या था मेरे उस ज़रा-सा ठिठक कर आगे बढ़ जाने में
जब मैंने छोटी दुपहिया साइकिलों की
बड़ी भारी दुकान देखी!!