"याद / जिगर मुरादाबादी" के अवतरणों में अंतर
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दीपक को मेघहार बनाती चली गई <br><br> | दीपक को मेघहार बनाती चली गई <br><br> | ||
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जितना ही कुछ सुकून सा आता चला गया <br> | जितना ही कुछ सुकून सा आता चला गया <br> | ||
उतना ही बेक़रार बनाती चली गई<br><br> | उतना ही बेक़रार बनाती चली गई<br><br> | ||
− | कैफ़ियतों को होश सा आता चला गया <br> | + | कैफ़ियतों को होश-सा आता चला गया <br> |
− | बेकैफ़ियतों को | + | बेकैफ़ियतों को नींद सी आती चली गई<br><br> |
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− | क्या क्या न शर्मसार बनाती चली गई<br><br> | + | क्या-क्या न शर्मसार बनाती चली गई<br><br> |
− | + | तफ़रीक़-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का झगड़ा नहीं रहा<br> | |
− | + | तमइज़-ए-क़ुर्ब-ओ-बोद मिटाती चली गई<br><br> | |
− | मैं तिशना | + | मैं तिशना काम-ए-शौक़ था पीता चला गया<br> |
वो मस्त अंखडि़यों से पिलाती चली गई<br><br> | वो मस्त अंखडि़यों से पिलाती चली गई<br><br> | ||
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उठती हुई मुझे भी उठाती चली गई<br><br> | उठती हुई मुझे भी उठाती चली गई<br><br> | ||
फिर मैं हूँ और इश्क़ की बेताबियाँ जिगर<br> | फिर मैं हूँ और इश्क़ की बेताबियाँ जिगर<br> | ||
− | अच्छा हुआ वो | + | अच्छा हुआ वो नींद की माती चली गई। |
00:34, 10 मई 2009 के समय का अवतरण
आई जब उनकी याद तो आती चली गई
हर नक़्श-ए-मासिवा को मिटाती चली गई
हर मन्ज़र-ए-जमाल दिखाती चली गई
जैसे उन्हीं को सामने लाती चली गई
हर वाक़या क़रीबतर आता चला गया
हर शै हसीन तर नज़र आती चली गई
वीरान-ए-हयात के एक-एक गोशे में
जोगन कोई सितार बजाती चली गई
दिल फुँक रहा था आतिश-ए-ज़ब्त-ए-फ़िराक़ से
दीपक को मेघहार बनाती चली गई
बेहर्फ़-ओ-बेहिकायत-ओ-बेसाज़-ओ-बेसदा
रग-रग में नग़मा बन के समाती चली गई
जितना ही कुछ सुकून सा आता चला गया
उतना ही बेक़रार बनाती चली गई
कैफ़ियतों को होश-सा आता चला गया
बेकैफ़ियतों को नींद सी आती चली गई
क्या-क्या न हुस्न-ए-यार से शिकवे थे इश्क़ को
क्या-क्या न शर्मसार बनाती चली गई
तफ़रीक़-ए-हुस्न-ओ-इश्क़ का झगड़ा नहीं रहा
तमइज़-ए-क़ुर्ब-ओ-बोद मिटाती चली गई
मैं तिशना काम-ए-शौक़ था पीता चला गया
वो मस्त अंखडि़यों से पिलाती चली गई
इक हुस्न-ए-बेजेहत की फ़िज़ाए बसीत में
उठती हुई मुझे भी उठाती चली गई
फिर मैं हूँ और इश्क़ की बेताबियाँ जिगर
अच्छा हुआ वो नींद की माती चली गई।