"नुक्ताचीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाये न बने / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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उस पे बन जाये कुछ ऐसी कि बिन आये न बने <br><br> | उस पे बन जाये कुछ ऐसी कि बिन आये न बने <br><br> | ||
00:08, 23 मई 2009 का अवतरण
नुक्ताचीं है ग़म-ए-दिल उस को सुनाये न बने
क्या बने बात जहाँ बात बनाये न बने
मैं बुलाता तो हूँ उस को मगर ऐ जज़्बा-ए-दिल
उस पे बन जाये कुछ ऐसी कि बिन आये न बने
खेल समझा है कहीं छोड़ न दे, भूल न जाये
काश यूँ भी हो कि बिन मेरे सताये न बने
ग़ैर फिरता है लिए यूँ तेरे ख़त को कि अगर
कोई पूछे कि ये क्या है तो छुपाये न बने
इस नज़ाकत का बुरा हो वो भले हैं तो क्या
हाथ आयें तो उन्हें हाथ लगाये न बने
कह सके कौन कि ये जल्वागरी किसकी है
पर्दा छोड़ा है वो उसने कि उठाये न बने
मौत की राह न देखूँ कि बिन आये न रहे
तुम को चाहूँ कि न आओ तो बुलाये न बने
बोझ वो सर पे गिरा है कि उठाये न उठे
काम वो आन पड़ा है कि बनाये न बने
इश्क़ पर ज़ोर नहीं, है ये वो आतिश "ग़ालिब"
कि लगाये न लगे और बुझाये न बने