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"वारिस शाह से / अमृता प्रीतम" के अवतरणों में अंतर

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आज वारिस शाह से कहती हूं
 
आज वारिस शाह से कहती हूं

16:16, 23 मई 2009 का अवतरण

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»  वारिस शाह से

आज वारिस शाह से कहती हूं

अपनी कब्र में से बोलो

और इश्क की किताब का

कोई नया वर्क खोलो

पंजाब की एक बेटी रोई थी

तूने एक लंबी दास्तान लिखी

आज लाखों बेटियां रो रही हैं,

वारिस शाह तुम से कह रही हैं

ए दर्दमंदों के दोस्त

पंजाब की हालत देखो

चौपाल लाशों से अटा पड़ा हैं,

चिनाव लहू से भरी पड़ी है

किसी ने पांचों दरियाओं में

एक जहर मिला दिया है

और यही पानी

धरती को सींचने लगा है

इस जरखेज धरती से

जहर फूट निकला है

देखो, सुर्खी कहां तक आ पंहुंची

और कहर कहां तक आ पहुंचा

फिर जहरीली हवा वन जंगलों में चलने लगी

उसमें हर बांस की बांसुरी

जैसे एक नाग बना दी

नागों ने लोगों के होंठ डस लिये

और डंक बढ़ते चले गये

और देखते देखते पंजाब के

सारे अंग काले और नीले पड़ गये

हर गले से गीत टूट गया

हर चरखे का धागा छूट गया

सहेलियां एक दूसरे से छूट गईं

चरखों की महफिल वीरान हो गई

मल्लाहों ने सारी कश्तियां

सेज के साथ ही बहा दीं
पीपलों ने सारी पेंगें

टहनियों के साथ तोड़ दीं

जहां प्यार के नगमे गूंजते थे

वह बांसुरी जाने कहां खो गई

और रांझे के सब भाई

बांसुरी बजाना भूल गये

धरती पर लहू बरसा

क़ब्रें टपकने लगीं

और प्रीत की शहजादियां

मजारों में रोने लगीं

आज सब कैदी बन गये

हुस्न इश्क के चोर

मैं कहां से ढूंढ के लाऊं

एक वारिस शाह और..