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"घिसी पैंसिल / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर

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फिर रात आ रही है
 
फिर रात आ रही है
  

16:05, 24 मई 2009 का अवतरण

फिर रात आ रही है

फिर वक़्त आ रहा है

जब नींद दु:ख दिन को

संपूर्ण कर चलेंगे

एकांत उपस्थित हो,'सोने चलो' कहेगा

क्या चीज़ दे रही है यह शांति इस घड़ी में ?

एकांत या कि बिस्तर या फिर थकान मेरी ?

या एक मुड़े काग़ज़ पर एक घिसी पैंसिल

तकिये तले दबा कर जिसको कि सो गया हूं ?


('कु़छ पते कुछ चिट्ठियां' नामक कविता-संग्रह से )