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"आज भी आया था वह / रवीन्द्र दास" के अवतरणों में अंतर

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16:24, 29 मई 2009 का अवतरण

आज भी आया था वह

आता है ऐसे ही अक्सर

खिसियासा, अकेले चिपकाए मुस्कान चेहरे पर

पार्टी के कुछ लोग

करते हैं विरोध उसका

कि मानते नहीं हैं सदस्य बनने योग्य भी उसे,

तो भी टूटा नहीं होसला

अभी तक

कि ठीक हो जाता है मैनेज करने से सबकुछ

पुरानी पहचान वाले लोग

जो जान भी गये हैं खेल उसका

बिगाड़ लेंगे क्या!

कि दालान भर नहीं किसी की दुनिया

बहुत बड़ी है

पुराना मकान, पुरानी पहचान

दकियानूसी लोग ही रखते हैं बचाकर

जिसे करनी है तरक्की

जिसे जाना है नदी के पार

कब तक ढोयेगा टोकड़ा मूल्यों का

ऐसे ही बोलता है नई पौधों के इर्द गिर्द

कि जलते हैं लोग मेरी चतुराई से...

लेकिन फिरता है फिफियात

लेकर चेहरे पर दैन्य भाव

बोल विनम्रता और सदासयता के

कि यही मान लो कि जीत नहीं है मेरी

यह मेरी हार है यही मान लो

शिक्षाप्रद कहानियाँ पंचतंत्र की

बातें हैं गए जमाने की

एक न एक दिन,

सबको करेगा इकट्ठा

चाहे बहलाकर, चाहे रिरियाकर

और फिर करेगा अट्टहास दर्प का

इसी दिन की प्रतीक्षा में

आया है आज भी

चिपकाये हुए दीनता की खिसियानी मुस्कुराहट

चेहरे पर विनम्रता के साथ

प्रतीक्षा जारी है

सो डोलता है ऐसे ही अक्सर!