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"फल / केशव शरण" के अवतरणों में अंतर
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टूट सकता था
अंधड़ों, आंधियों में
मैं फल कच्चा था
मगर नहीं टूटा
यह अच्छा था
अच्छा था, चाहूँ मैं
आगे भी अच्छा हो
मैं गिर जाऊँ टूटकर
इससे पहले कि सड़न
मुझमें पैदा हो